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प्रगीत और समाज पाठ का सारांश

प्रगीत और समाज पाठ लेखक परिचय

  • लेखक- नामवर सिंह

  • जन्म- 28 जुलाई 1926, बनारस, उत्तर प्रदेश

  • निधन- 19 फरवरी 2019, नई दिल्ली

नामवर सिंह की रचनाएँ

  • पारदर्शी नील जल में
  • विजन गिरिपथ पर चटखती
  • धुंधुवाता अलाव
  • आज तुम्हारा जन्मदिवस
  • मंह मंह बेल कचेलियाँ
  • पंथ में सांझ
  • कोजागर
  • उनये उनये भादरे
  • फागुनी शाम

प्रगीत और समाज पाठ का सारांश लिखिए

प्रस्तुत निबंध में नामवर सिंह प्रगीत के उदय के ऐतिहासिक और समाज कारणों की पड़ताल करते हैं । उनका मानना है कि प्रगीत हिन्दी की अपनी लोकपरक जातीय काव्य संवेदना का आधुनिक विकास है । मुक्तकों में भी जीवन का यथार्थ अपनी पूरी इयता के साथ उपस्थित होता है । हिन्दी कविता का जातीय इतिहास मूलतः प्रगिता का इतिहास है । जातीय इतिहास से यहा तात्पर्य है – हिन्दी भूमि के जनमानस से संबंध कविता रूपों के विकास का इतिहास है । विद्यापति जिसे , इस आधार पर हिन्दी का पहला कवि माना जाता है , ने गीतों से ही अपनी रचनयात्रा आरंभ कि थी । उनकी परंपरा का विकास संतों और भक्तों की प्रगीतात्मक वाड़ियों में लक्षित किया जा सकता है । 

तुलसी के विनय पत्रिका के अलावा कबीर , सुर , मिरा , नानक , रैदास आदि ने लोकभाषा की परिष्कृत गीतात्मक से प्राण ग्रहण करते हुए अपने प्रगीतात्मक काव्य रचे | इन प्रगीतों की चरम वैयक्तिकता ही परम समाजिकता के रूप में प्रतिफलित हुई और भक्ति काव्य एक आंदोलन के रूप में जनमानस के लिए प्रेरणास्त्रोत बना | वे इसका विकास आधुनिक काल तक देखते हुए बताते हैं हिन्दी की आधुनिक कविता एक प्रगीतात्मक सौन्दर्यशस्त्र को विकसित कर रही है । यह न तो व्यक्तिक की आंतरिक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति को प्रकट करने में संकोच कर रही है और न ही न ही बाहर का अथार्थ का रचनात्मक सामना करने में हिचक रही है । अंदर न तो किसी असंदिग्ध विश्वदृष्टि का मजबूइट खूटा गाड़ने का जिद है और न ही बाहर को एक विराट में आकने की हवस | बाहर छोटी से छोटी घटना , स्थिति , वस्तु आदि पर नजर है और कोशिश है उसे अर्थ देने की । इसी तरह बाहर की प्रतिक्रियास्वरूप अंदर उठने वाली छोटी से छोटी लहर को भी पकड़कर उसे शब्दों में बांध लेने का उत्साह आर्थत आधुनिक कविता न तो रोमांटिकता की हद तक व्यक्तिवादी , आत्मपरक और कलावादी है और न ही सामाजिक यथार्थ के प्रति यांत्रिक रूप से संवेदित | 

यह कविता किसी जड़ीभूत सौन्दर्यभिरुचि की जगह व्यक्ति और समाज के द्वन्दात्मक सम्बन्धों को उनके संश्लेष में देख रही है । यहाँ किसी प्रकार का पूर्वाग्रह और दुराग्रह नही है बल्कि एक वस्तिविक लोकतान्त्रिक कलाबोध आधुनिक कविता की विशेषता के रूप में देखा जा सकता है । प्रगीतों की इस आधुनिक उन्नयन के क्रम में शमशेर , त्रिलोचन नागार्जुन , तथा केदारनाथ सिंह का करता हुआ यह निबंध कविता के समाजशास्त्रीय विश्लेषण के एक प्रतिदर्श के रूप में देखा जा सकता है।

प्रगीत और समाज पाठ से आपके परीक्षा में आने वाले प्रश्न

  1. प्रगीत और समाज पाठ का सारांश लिखें।
  2. प्रगीत और समाज के लेखक कौन हैं ?
  3. नामवर सिंह की रचनाएँ का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
  4. प्रगीत और समाज पाठ की विशेषताएँ

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