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जूठन पाठ का सारांश

जूठन पाठ लेखक परिचय

  • लेखक – ओमप्रकाश वाल्मीकि

  • जन्म – 30 जून 1950

  • निधन –  17 नवम्बर 2013

  • जन्म स्थान – बरला गांव, मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) जिला

ओमप्रकाश वाल्मीकि की रचनाएँ

  • कविता संग्रह -सदियों का संताप, बस्स! बहुत हो चुका, अब और नहीं, शब्द झूठ नहीं बोलते, चयनित कविताएँ (डॉ॰ रामचंद्र)
  • कहानी संग्रह – सलाम, घुसपैठिए, अम्‍मा एंड अदर स्‍टोरीज, छतरी
  • आत्मकथा – जूठन (अनेक भाषाओँ में अनुवाद)
  • आलोचना – दलित साहित्य का सौंदर्य शास्त्र, मुख्यधारा और दलित साहित्य

जूठन पाठ का सारांश लिखिए

ओमप्रकाश वाल्मीकि हिन्दी में दलित आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण रचनाकार हैं । उनके साहित्य में महज आक्रोश और प्रतिक्रिया से परे समता, न्याय और मानवीयता पर टिकी एक नई पूर्णतर सामाजिक चेतना और संस्कृतिबोध की आहट है । ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा ” जूठन ‘ ने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया था । अपनी संवेदना और मार्मिकता के कारण प्रस्तुत अंश मन पर गहरा असर छोड़ता है ।

लेखक का पूरा परिवार गाँव में मेहनत – मजदूरी का काम करता था जिसमें एक – एक घर में 10-15 मेवेशियों का काम , बैठकखाने की सफाई का काम करना पड़ता था । सर्दी के महीनों में यह काम और कठिन हो जाता था क्योकि प्रत्येक घरों से मवेशियों के गोबर उठाकर गाँव से बाहर कुरड़ियों पर या उपले बनाने की जगह तक पहुँचाना पड़ता था । इस सब कामों के बदले मिलता था दस जानवर पीछे 12-13 किलो अनाज । दोपहर में बची – खुची रोटी मिलती थी जो खासतौर पर चूहड़ों (दलित) को देने के लिये बनाई जाती थी । कभी – कभी जूठन भी भंगन की टोकरी में डाल दी जाती थी । दिन-रात मर-खप कर भी हमारे पसीने की कीमत मात्र जूठन फिर भी किसी को कोई शिकायत नहीं, कोई शर्मिंदगी नहीं, पश्चाताप नहीं। यह कितना क्रूर समाज है जिसमें श्रम का मोल नहीं बल्कि निर्धनता को बरकरार रखने का एक षड्यंत्र ही था सब।

 शादी – ब्याह के मौके पर जूठे पत्तल चूहड़ों के टोकरे में डाल दिये जाते थे , जिन्हें घर ले जाकर वे जूठन इकट्ठी कर लिया करते थे । पत्तलों से पूड़ियों के टूकड़े जो बचे होते थे उन्हें चारपाई पर कोई कपड़ा डालकर उस पर सूखा कर रख लिये जाते थे । मिठाइयाँ जो इकट्ठी होती थी वे कई – कई दिनों तक अथवा बड़ी बारातों की मिठाइयाँ कई – कई महीने तक आपस में चर्चा कर – करके खाते रहते थे । सुखी हुई पूरियों की लुग्दी बनाकर अथवा उबाल कर मिर्च – मसाले डालकर खाने में मजा आता था । आज जब इन सब बातों के बारे में लेखक सोचता है तो मन के भीतर काँटे जैसा उगने लगता है । कैसा जीवन था । ” लेखक अपनी माँ के साथ सुखदेव सिंह त्यागी की बेटी के विवाह में टोकरी लेकर घर के बाहर जूठन समेटकर इकट्ठा करती है । सुखदेव सिंह के घर के बाहर आने पर लेखक की माँ अपने लिये पत्तल पर खाने हेतु कुछ पुरियों की माँग करती है , बदले में उसे सुखदेव सिंह की फटकार मिलती है । वह चुपचाप टोकरी लेकर घर चली जाती है । यह उसकी महानता का प्रतीक है । ” जूठन ” शीर्षक आत्मकथा के माध्यम से लेखक ने अपने बचपन का संस्मरण एवं परिवार की गरीबी का वर्णन करते हुए इस बात को सिद्ध करने का प्रयास किया है कि गरीबों के पास गरीबी है किन्तु साथ ही दिल और दिमाग भी है साथ ही संतोष भी । ये विशेषताएँ अमीरों में नहीं पायी जाती । गरीब चुप – चाप अपमान बर्दाश्त कर लेता है , उसे भूल भी जाता है । दुर्व्यवहार करनेवाले को माफ भी कर देते है । लेखक के संकलन में यह प्रत्यक्ष रूप से पाते ।

जूठन पाठ से आपके परीक्षा में आने वाले प्रश्न

  1. जूठन पाठ का सारांश लिखें।
  2. जूठन पाठ के लेखक कौन हैं ?
  3. ओमप्रकाश वाल्मीकि का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
  4. जूठन पाठ की विशेषताएँ

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