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सिपाही की माँ पाठ का सारांश

सिपाही की माँ पाठ लेखक परिचय

लेखक – मोहन राकेश

जन्म – 8 जनवरी, 1925

निधन – 3 जनवरी, 1972

जन्म स्थान – ‎अमृतसर, पंजाब

मोहन राकेश की रचनाएँ

  • उपन्यास – अंधेरे बंद कमरे, अन्तराल, न आने वाला कल।
  • कहानी संग्रह – क्वार्टर तथा अन्य कहानियाँ, पहचान तथा अन्य कहानियाँ, वारिस तथा अन्य कहानियाँ
  • नाटक – आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे अधूरे, पैर तले की जमीन (अधूरा, कमलेश्वर ने पूरा किया) ।

सिपाही की माँ पाठ का सारांश लिखिए

मोहन राकेश की प्रस्तुत मार्मिक रचना में निम्न मध्यवर्ग की एक ऐसी माँ – बेटी की कथावस्तु प्रस्तुत है जिनके घर का इकलौता लड़का सिपाही के रूप में द्वितीय विश्वयुद्ध के मोर्चे पर बर्मा में लड़ने गया है । वह अपनी माँ का इकलौता बेटा और विवाह के लिए तैयार अपनी बहन का इकलौता भाई है । उसी पर घर की पूरी आशा टिकी हुई है । वह लड़ाई के मोर्चे से कमाकर लौटे तो बहन के हाथ पीले हो सकें । माँ एक देहाती भोली स्त्री है , वह यह भी नहीं जानती कि बर्मा उसके गाँव से कितनी दूर है और लड़ाई कैसी , किनसे और किसलिए हो रही है । उसका अंजाम ऐसा भी हो सकता है कि सबकुछ खत्म हो जाए – ऐसा वह सोच भी नहीं सकती । माँ और छाया की तरह उससे लगी बेटी के भीतर की वह आशा जो बेटे से जुड़ी हुई है अनेक रूप – रंग ग्रहण करती है । उसकी सम्पूर्ण नाटकीयता और रंग सम्भावनाओं का लेखक ने ऐसा उद्घाटन किया है कि रचना के अंत में एक विषाद मन पर स्थायी प्रभाव छोड़ जाता है ।

बिशनी मोहन राकेश द्वारा लिखित ‘ सिपाही की माँ ‘ शीर्षक एकांकी का प्रमुख महिला पात्र है । एकांकी के शीर्षक से ही यह स्पष्ट होता है कि बिशनी केवल मानक की माँ ही नहीं है बल्कि , वह किसी भी सिपाही की माँ है । सिपाही की माँ का गुण उसमें तब दिखाई पड़ता है जब वह स्वप्न में अपने सिपाही बेटे मानक एवं दुश्मन सिपाही में लड़ते हुए देखकर विचलित नहीं होती बल्कि वह हर हाल में अपने बेटे मानक को दुश्मन सिपाही से बचाती है । जब उसी का सिपाही बेटा दुश्मन ‘ सिपाही को मारना चाहता है तो यह कार्य भी उसे कतई पसन्द नहीं । वह दृढ़ता पूर्वक अपने मानक को दुश्मन सिपाही को मारने से रोकती है । वह मानक से कहती है कि वह भी हमारी तरह गरीब आदमी है । इसकी माँ इसके पीछे रो – रोकर पागल हो गयी है । इसके घर में बच्चा होनेवाला है । यह मर गया तो इसकी बीबी फाँसी लगाकर मर जायेगी । यहाँ बिशनी का चरित्र सबकी माँ के रूप में पाठक के सामने आया है । वह केवल मानक की माँ नहीं है । वह सबकी माँ है । वह किसी के बेटे को भी मरता देखना नहीं चाहती है । वह सही अर्थ में एक माँ है । इसलिए यह कहना उचित है कि बिशनी के मातृत्व में किसी भी सिपाही की माँ को ढूँढा जा सकता है । मोहन राकेश के ‘ सिपाही की माँ ‘ एकांकी नाटक में ऐसे बहुत से दृश्य उभरकर आते हैं जिनमें रंग – संयोजन या निर्देशन का सफल प्रयोग हुआ है । कई दृश्य इतने मार्मिक हैं कि वे बहुत देर तक मन – मस्तिष्क पर अपनी आभा छोड़े बिना नहीं रहते । मार्मिक प्रसंगों द्वारा एक से बढ़कर एक दृश्य उभरकर बेचैनी पैदा कर देते हैं । जेहन में चिंतन की रेखाएँ साफ दिखायी पड़ती है ।

 

सिपाही की माँ पाठ से आपके परीक्षा में आने वाले प्रश्न

  1. सिपाही की माँ पाठ का सारांश लिखें।
  2. सिपाही की माँ पाठ के लेखक कौन हैं ?
  3. मोहन राकेश का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
  4. सिपाही की माँ पाठ की विशेषताएँ

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