ओ सदानीरा लेखक परिचय
- लेखक – जगदीशचन्द्र माथुर
- जन्म – 16 जुलाई, 1917
- जन्म भूमि – खुर्जा, बुलंदशहर ज़िला, उत्तर प्रदेश
- निधन – 14 मई, 1978
जगदीशचन्द्र माथुर की रचनाएँ
- भोर का तारा (1946 ई.),
- कोणार्क (1950 ई.),
- ओ मेरे सपने (1950 ई.)
- शारदीया (1959 ईं),
- दस तस्वीरें (1962 ई.), ‘
- परंपराशील नाट्य (1968 ई.),
- पहला राजा (1970 ई.)
- जिन्होंने जीना जाना (1972 ई.)
ओ सदानीरा का सारांश लिखिए
जगदीश चंद्र माथुर ओ सदानीरा सरस्वत निबंध के माध्यम से गंडक नदी को आधार बनाकर उसके किनारे बसे संस्कृति और जीवन की झांकी पेश करते हैं
सर्वप्रथम चंपारण क्षेत्र के प्राकृतिक वातावरण का वर्णन करते हुए उसकी एक-एक अंग का सुंदरता पूर्वक वर्णन करते हैं। वे बताते हैं कि नदियों में बाढ़ आना मनुष्य के स्वार्थ के कारण है यदि महावन जो चंपारण से गंगा तट तक फैला हुआ था ना कटता तो बाढ़ ना आती वही वह कहते हैं की धर्मार्ध मानव पूजा-पाठ केसरी गली सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर उसे दूषित कर रहा है।
जगदीश चंद्र माथुर मध्ययुगीन समाज की सच्चाई भी बताते हैं कि आक्रमण के कारण या अपनी महत्वाकांक्षा के तृप्ति के लिए मुसलमान शासकों ने अंधाधुंध जंगलों की कटाई की। इसी तरह यहां अनेक संस्कृति आए और यही बस गए हैं। सभी ने उसका दोहन ही किया। चंपारण के प्रत्येक स्थल पर प्राचीन युग से लेकर आधुनिक युग में गांधी के चंपारण आने तक के पूरे इतिहास को अपनी लेखनी के माध्यम से अच्छे बुरे प्रभाव को खंगालते हैं।
अंत में गंडक की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि ओ सदानीरा! ओ नारायणी! ओ महागंडक! युगों में दिन हीन जनता इस विविध नामों से तुझे संबोधित करती रही है। और तेरे पूजन के लिए जिस मंदिर की प्रतिष्ठान हो रही है उसके नींव बहुत गाढ़ी है, इसे तू ठुकरा ना पाएगी।
अंततः हम यह कह सकते हैं कि “ओ सदानीरा” जगदीशचंद्र माथुर के सबसे अच्छे निबंधों में से एक है और इस निबंध के माध्यम से उन्होंने अपने विचारों को काफी अच्छे तरीके से प्रस्तुत किए हैं।
ओ सदानीरा से आपके परीक्षा में आने वाले प्रश्न
- ओ सदानीरा पाठ का सारांश लिखें।
- ओ सदानीरा पाठ के लेखक कौन हैं ?
- जगदीशचन्द्र माथुर का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
- ओ सदानीरा की विशेषताएँ
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