कड़बक पाठ Subjective Questions
- ‘कड़बक’ के कवि हैं :
उत्तर- जायसी
- ‘पद्मावत’ के कवि का क्या नाम हैं?
उत्तर- मलिक मुहम्मद जायसी
- मलिक मुहम्मद जायसी किस शाखा के कवि हैं?
उत्तर- ज्ञानमार्गी
- पहले कड़बक में कवि ने अपने लिए किन उपमानों की चर्चा की है, उन्हें लिखें।
उत्तर- पहले कड़बक में कवि ने चाँद, सूक, अम्ब, समुद्र, सुमेरू, घरी, दर्पण आदि उपमानों का प्रयोग अपने लिए किए हैं।
- दोनों कड़बक के रस और काव्य गुण क्या हैं?
उत्तर- जायसी के दोनों कड़बकों में शांत रस का प्रयोग हुआ है। दोनों कड़बकों में माधुर्य गुण है।
- पहले कड़बकों से संज्ञा पदों को चुनें।
उत्तर- संज्ञा पद-नयन, कवि, मुहम्मद, चाँद, जंग, विधि, अवतार, सूक, नख, अम्ब, डाभ, . सुगंध, समुद्र, पानी, सुमेरु, तिरसूल, कंचन, गिरि, आकाश, धरी, काँच, कंचन, दरपन, पाउ, मुख।
- दूसरे कड़बक से सर्वनाम पदों को चुनें।
उत्तर- यह, सो, अस, यह, मकु, सो, कहाँ, अब, अस, कँह, जेई, कोई, जस, कई, जरा, जो।
- ‘फूल मरै पै मरै न वासु’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- मनुष्य मर जाता है पर उसका कर्म रहता ही है।
- कवि ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से क्यों की है?
उत्तर- कवि ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से इसलिए की है क्योंकि दर्पण स्वच्छ व निर्मल होता है, उसमें मनुष्य की वैसी ही प्रतिछाया दिखती है जैसा वह वास्तव में होता है। कवि स्वयं को दर्पण के समान स्वच्छ व निर्मल भावों से ओत-प्रोत मानता है। उसके हृदय में जरा-सा भी कृत्रिमता नहीं है। उसके इन निर्मल भावों के कारण ही बड़े-बड़े रूपवान लोग उसके चरण पकड़कर लालसा के साथ उसके मुख की ओर निहारते हैं।
- पहले कड़बक में कलंक, काँच और कंचन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- अपनी कविताओं में कवि जायसी ने कलंक, काँच और कंचन आदि शब्दों का प्रयोग किया है। इन शब्दों की कविता में अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं। कवि ने इन शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने का कार्य किया है।
जिस प्रकार काले धब्बे के कारण चन्द्रमा कलंकित हो गया फिर भी अपनी प्रभा से जग को आलोकित करने का काम करता है। उसकी प्रभा के आगे चन्द्रमा का काला धब्बा ओझल हो जाता है, ठीक उसी प्रकार गुणीजन की कीर्त्तियों के सामने उनके एकाध-दोष लोगों की नजरों से ओझल हो जाते हैं। कंचन शब्द के प्रयोग करने के पीछे कवि की धारणा है कि जिस प्रकार शिव-त्रिशूल द्वारा नष्ट किये जाने पर सुमेरु पर्वत सोने का हो गया ठीक उसी प्रकार सज्जनों की संगति से दुर्जन भी श्रेष्ठ मानव बन जाता है। संपर्क और संसर्ग में ही वह गुण निहित है लेकिन पात्रता भी अनिवार्य है।
यहाँ भी कवि ने गुण-कर्म की विशेषता का वर्णन किया है। ‘काँच’ शब्द की अर्थक्ता भी कवि ने अपनी कविताओं में स्पष्ट करने की चेष्टा की है। बिना घरिया में (सोना गलाने के पात्र को घरिया कहते हैं) गलाए काँच असली स्वर्ण रूप को नहीं प्राप्त कर सकता है ठीक उसी प्रकार इस संसार में किसी मानव को बिना संघर्ष, तपस्या और त्याग के श्रेष्ठमा नहीं प्राप्त हो सकती।
उपरोक्त शब्दों की चर्चा करते हुए कवि ने लोक जगत को यह बताने की चेष्टा की है कि किसी भी जन का अपने लक्ष्य शिखर पर चढ़ने के लिए जीवन रूपी घरिया में स्वयं को तपाना पड़ता है। निखारना पड़ता है। उक्त शब्दों के माध्यम से कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि गुणी होने के लिए सतत संघर्ष और साधना की जरूरत है। यही एक माध्यम है जिसके कारण जीवन रूपी सुमेरू, चाँद या कच्चे सोने को असली रूप दिया जा सकता है। गुणवान व्यक्ति सर्वत्र और सर्वकाल में पूजनीय हैं वंदनीय हैं।
कहने का तात्पर्य है कि एक आँख से अंधे होने पर भी जायसी अपनी काव्य प्रतिभा और कृतित्व के बल पर लोक जगत में सदैव आदर पाते रहेंगे।
- पहले कड़बक में व्यंजित जायसी के आत्मविश्वास का परिचय अपने शब्दों में दें।
उत्तर- महाकवि मलिक मुहम्मद जायसी अपनी कुरूपता और एक आँख से अंधे होने पर शोक प्रकट नहीं करते हैं बल्कि आत्मविश्वास के साथ अपनी काव्य प्रतिभा के बल पर लोकहित की बातें करते हैं। प्राकृतिक प्रतीकों द्वारा जीवन में गुण की महत्ता की विशेषताओं का वर्णन करते हैं।
जिस प्रकार चन्द्रमा काले धब्बे के कारण कलंकित तो हो गया किन्तु अपनी प्रभायुक्त आभा से सारे जग को आलोकित करता है। अत: उसका दोष गुण के आगे ओझल हो जाता है।
जिस प्रकार बिना आम्र में मंजरियों या डाभ के नहीं आने पर सुबास नहीं पैदा होता है, चाहे सागर का खारापन उसके गुणहीनता का द्योतक है। सुमेरू-पर्वत की यश गाथा भी शिव-त्रिशूल के स्पर्श बिना निरर्थक है। घरिया में तपाए बिना सोना में निखार नहीं आता है ठीक उसी प्रकार कवि का जीवन भी नेत्रहीनता के कारण दोष-भाव उत्पन्न तो करता है किन्तु उसकी काव्य-प्रतिभा के आगे सबकुछ गौण पड़ जाता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि कवि का नेत्र नक्षत्रों के बीच चमकते शुक्र तारा की तरह है। जिसके काव्य का श्रवण कर सभी जन मोहित हो जाते हैं। जिस प्रकार अथाह गहराई और असीम आकार के कारण समुद्र की महत्ता है। चन्द्रमा अपनी प्रभायुक्त आभा के लिए सुखदायी है। सुमेरू पर्वत शिव-त्रिशूल द्वारा आहत होकर स्वर्णमयी रूप को ग्रहण कर लिया है। आम भी डाभ का रूप पाकर सुवासित और समधुर हो गया है। घरिया में तपकर कच्चा सोना भी चमकते सोने का रूप पा लिया है।
जिस प्रकार दर्पण निर्मल और स्वच्छ होता है-जैसी जिसकी छवि होती है-वैसा ही प्रतिबिम्ब दृष्टिगत होता है। ठीक उसी प्रकार कवि का व्यक्तित्व है। कवि का हृदय स्वच्छ और निर्मल है। उसकी कुरूपता और एक आँख के अंधेपन से कोई प्रभाव नहीं पड़नेवाला। वह अपने लोक मंगलकारी काव्य-सृजनकार सारे जग को मंगलमय बना दिया है। इसी कारण रूपवान भी उसकी प्रशंसा करते हैं और शीश नवाते हैं। उपरोक्त प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अपने आत्मविश्वास का सटीकर चित्रण अपनी कविताओं के द्वारा किया है।
- कवि ने किस रूप में स्वयं को याद रखे जाने की इच्छा व्यक्त की है? उनकी इस इच्छा का मर्म बताएँ।
उत्तर- कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी स्मृति के रक्षार्थ जो इच्छा प्रकट की है, उसका वर्णन अपनी कविताओं में किया है।
कवि का कहना है कि मैंने जान-बूझकर संगीतमय काव्य की रचना की है ताकि इस प्रबंध के रूप में संसार में मेरी स्मृति बरकरार रहे। इस काव्य-कृति में वर्णित प्रगाढ़ प्रेम सर्वथा नयनों की अश्रुधारा से सिंचित है यानि कठिन विरह प्रधान काव्य है।
दूसरे शब्दों में जायसी ने उस कारण का उल्लेख किया है जिससे प्रेरित होकर उन्होंने लौकिक कथा का आध्यात्मिक विरह और कठोर सूफी साधना के सिद्धान्तों से परिपुष्ट किया है। इसका , कारण उनकी लोकैषणा है। उनकी हार्दिक इच्छा है कि संसार में उनकी मृत्यु के बाद उनकी कीत्ती नष्ट न हो। अगर वह केवल लौकिक कथा-मात्र लिखते तो उससे उनकी कार्ति चिर स्थायी नहीं होती। अपनी कीर्ति चिर स्थायी करने के लिए ही उन्होंने पद्मावती की लौकिक कथा को सूफी साधना का आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर प्रतिष्ठित किया है। लोकैषणा भी मनुष्य की सबसे प्रमुख वृत्ति है।
- भाव स्पष्ट करें-जौं लहि अंबहि डांभ न होई। तौ लहि सुगंध बसाई न सोई॥
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कड़बक से उद्धृत की गयी है। इस कविता के रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी हैं। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने अपने विचारों को प्रकट करने का काम किया है। जिस प्रकार आम में नुकीली डाभे (कोयली) नहीं निकलती तबतक उसमें सुगंध नहीं आता यानि आम में सुगन्ध आने के लिए डाभ युक्त मंजरियों का निकलना जरूरी है। डाभ के कारण आम की खुशबू बढ़ जाती है, ठीक उसी प्रकार गुण के बल पर व्यक्ति समाज में आदर पाने का हकदार बन जाता है। उसकी गुणवत्ता उसके व्यक्तित्व में निखार ला देती है।
काव्य शास्त्रीय प्रयोग की दृष्टि से यहाँ पर अत्यन्त तिरस्कृत वाक्यगत वाच्य ध्वनि है। यह ध्वनि प्रयोजनवती लक्षण का आधार लेकर खड़ी होती है। इसमें वाच्यार्थ का सर्वथा त्याग रहता है और एक दूसरा ही अर्थ निकलता है।।
इन पंक्तियों का दूसरा विशेष अर्थ है कि जबतक पुरुष में दोष नहीं होता तबतक उसमें गरिमा नहीं आती है। डाभ-मंजरी आने से पहले आम के वृक्ष में नुकीले टोंसे निकल आते हैं।
- ‘रकत कै लेई’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- कविवर जायसी कहते हैं कि कवि मुहम्मद ने अर्थात् मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है। इस काव्य को जिसने भी सुना है उसी को प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ है। मैंने इस कथा को रक्त रूपी लेई के द्वारा जोड़ा है और इसकी गाढ़ी प्रीति को आँसुओं से भिगोया है। यही सोचकर मैंने इस ग्रन्थ का निर्माण किया है कि जगत में कदाचित, मेरी यही निशानी शेष बची रह जाएगी।
- महम्मद यहि कबि जोरि सनावा’-यहाँ कवि ने ‘जोरि’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है?
उत्तर- ‘मुहम्मद यहि कबि जोरि सुनावा’ में ‘जोरि’ शब्द का प्रयोग कवि ने ‘रचकर’ अर्थ में किया है अर्थात् मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है। कवि यह कहकर इस तथ्य को उजागर करना चाहता है कि मैंने रत्नसेन, पद्मावती आदि जिन पात्रों को लेकर अपने ग्रन्थ की रचना की है, उनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था, अपितु उनकी कहानी मात्र प्रचलित रही है।
- दूसरे कड़बक का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट करें।
उत्तर- दूसरे कड़बक में कवि ने इस तथ्य को उजागर किया है कि उसने रत्नसेन, पद्मावती आदि जिन पात्रों को लेकर अपने ग्रन्थ की रचना की है उनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था, अपितु उनकी कहानी मात्र प्रचलित रही है। परन्तु इस काव्य को जिसने भी सुना है उसी को प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ है। कवि ने इस कथा को रक्त-रूपी लेई के द्वारा जोड़ा है और इसकी गाढ़ी प्रीति को आँसुओं से भिगोया है। कवि ने इस काव्य की रचना इसलिए की क्योंकि जगत में उसकी यही निशानी शेष बची रह जाएगी। कवि यह चाहता है कि इस कथा को पढ़कर उसे भी याद कर लिया जाए।
- व्याख्या करें
“धनि सो पुरुख जस कीरति जासू।
फूल मरै पै मरै न बासू ॥”
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ जायसी लिखित कड़बक के द्वितीय भाग से उद्धत की गयी है। उपरोक्त पंक्तियों में कवि का कहना है कि जिस प्रकार पुष्प अपने नश्वर शरीर का त्याग कर देता है किन्तु उसकी सुगन्धित धरती पर परिव्याप्त रहती है, ठीक उसी प्रकार महान व्यक्ति भी इस धाम पर अवतरित होकर अपनी कीर्ति पताका सदा के लिए इस भवन में फहरा जाते हैं। पुष्प सुगन्ध सदृश्य यशस्वी लोगों की भी कीर्तियाँ विनष्ट नहीं होती। बल्कि युग-युगान्तर उनकी लोक हितकारी भावनाएँ जन-जन के कंठ में विराजमान रहती है।
दूसरे अर्थ में पद्मावती की लौकिक कथा को आध्यात्मिक धरातल पर स्थापित करते हुए कवि ने सूफी साधना के मूल-मंत्रां को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया है। इस संसार की नश्वरता की चर्चा लौकिक कथा काव्यों द्वारा प्रस्तुत कर कवि ने अलौकिक जगत से सबको रू-ब-रू कराने का काम किया है। यह जगत तो नश्वर है केवल कीर्तियाँ ही अमर रह जाती हैं। लौकिक जीवन में अमरता प्राप्ति के लिए अलौकिक कर्म द्वारा ही मानव उस सत्ता को प्राप्त कर सकता है।